Lekhika Ranchi

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आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-



141. मागध मंत्रणा : वैशाली की नगरवधू

सेनापति भद्रिक और सम्राट ने स्कन्धावार राजगृह के मन्त्रणागार में युद्ध- मन्त्रणा की । मन्त्रणा में सम्राट, महासेनापति आर्य भद्रिक , सेनापति उदायि , सेनापति सोमप्रभ और अमात्य सुनीथ उपस्थित थे। उनके अतिरिक्त अपनी - अपनी सेना लेकर आए हुए सहायक राजा और राज - सेनापति भी उपस्थित थे, जिनमें बंग के वैश्रमणदत्त , कलिंग के वीरकृष्ण मित्र , अवन्ती के श्रीकान्त , भोज के समुद्रपाल , आन्ध्र के सामन्त भद्र, माहिष्मती के सुगुप्त , भृगुकच्छ के सुदर्शन और प्रतिष्ठान के सुवर्णबल - ये आठ मित्र महासेनापति सम्मिलित थे।

युद्ध के सम्बन्ध में सब अंगों पर प्रकाश डाला गया । दूष्य सेना , शत्रुसेना , आटविक सेना का पृथक् - पृथक् विभाजन कर पृथक्- पृथक् सेनापतियों को सौंप दिया गया । अपसार , प्रतिग्रह, पार्वत दुर्ग , नदी - दुर्ग और वन -दुर्गों के अधिकार पृथक्- पृथक् सेनानायकों को बांट दिए गए ।

शून्यपाल और वस्तुपाल नियत किए गए। सत्रों की रक्षा का समुचित प्रबन्ध किया गया ।

सम्पूर्ण सेना का अधिनायकत्व महासेनापति आर्य भद्रिक ने ग्रहण किया । सेनापति सोमप्रभ हुए । आर्य उदायि को नौबलाध्यक्ष नियत किया गया । अमात्य सुनीथ शून्यपाल नियत हुए । आचार्य काश्यप कूटयुद्ध के नायक हुए । सम्पूर्ण सम्मिलित स्थल - सैन्य का दायित्व सोमप्रभ को दिया गया - दक्षिण युद्ध- केन्द्र पर उनकी नियुक्ति हुई । आठों मित्र सेनानायक राजपुरुष उनकी अधीनता में रखे गए। सत्रों का भार गोपाल भट्ट को दिया गया । सम्राट् को युद्ध भार से सर्वथा मुक्त रखा गया । शत्रु - पक्ष में सम्राट को कोई न पहचान पाए, इसके लिए अनेक गूढ़ पुरुष सम्राट के वेश में नियत किए गए ।

सूत और मागधगण सेना के उत्साह- वर्धन के लिए नियुक्त हुए । शल्य-चिकित्सकों को शस्त्र , यन्त्र , अगद, स्नेह और वस्त्रों तथा खाने-पीने, शुश्रूषा करने के सब साधनों से सम्पन्न परिचारिकाओं सहित यथास्थान नियत किया गया । धान्वन दुर्ग में युद्ध करनेवाले योद्धाओं को , वनदुर्ग में युद्ध करनेवाले योद्धाओं को , जल तथा स्थल में युद्ध करनेवाले योद्धाओं को , खाई खोदकर उनमें बैठकर युद्ध करनेवाले योद्धाओं, आकाश में युद्ध करनेवाले तथा दिनभर और रात्रि में युद्ध करने वाले योद्धाओं को यथावत् विभाजित कर , उनके सेनानायकों को उन्हें सौंप , युद्ध- योग्य प्रदेश , ऋतु और अपेक्षित समय की सब व्यवस्थाओं पर विचार व्यवस्थित किया गया । रथ - युद्ध , हस्ति - युद्ध, अश्व - युद्ध तथा पदाति - युद्ध एवं चतुरंग प्रकाश- युद्ध के स्थान के मानचित्रों पर सम्यक् रीति से विचार करके सामरिक दृष्टि से उनके नियोजन की व्यवस्था की गई । भूमिविचय , वनविचय , विषम , तोय , तीर्थ, वात और रश्मि के उपयुक्त स्थलों पर संघात स्थापित किए गए । शत्रु के विविध आसार और अपने विविध आसार का प्रबन्ध किया गया । शत्रु की सेना को पकड़ने , शत्रु से पकड़े हुए अपने योद्धाओं को छुड़ाने , अपनी सेना के मार्ग पर शत्रुओं की सेना के चले जाने पर स्वयं शत्रु- सेना के मार्ग का अनुसरण करने , शत्रु के कोष और सेनानायकों का अपहरण करने , पीछे तथा सम्मुख हो आक्रमण करने , भागते हुए सैनिकों का पीछा करने तथा बिखरी हुई अपनी सेना को एकत्रित करने की सम्पूर्ण योजनाओं पर विचार किया गया ।

ये सारे कार्य अश्वारोही सैन्य को सौंपे गए।

सेना के अग्रभाग और पश्च -भाग का रक्षण करने , नये तीर्थ और नये मार्ग बनाने . घने जंगलों के घमासान युद्ध में प्रमुख भाग लेने , शत्रु के वासस्थानों में आग लगाने और अपने स्कन्धावार निवेश में लगी आग को बुझाने, शत्रु की संगठित सैन्य को छिन्न -भिन्न करने, योद्धाओं को पकड़ने, परकोट , द्वार , अटारी आदि गिराने , शत्रु के कोष को लूट ले भागने का कार्य हाथियों के अधिपति को सौंपा गया ।

अपनी सेना की रक्षा करने , आक्रमण के समय शत्रु सैन्य को रोकने , शत्रु के द्वारा पकड़े गए अपने योद्धाओं को छुड़ाने , बिखरी सेना को एकत्रित करने , शत्रु की सेना को विचलित करने का कार्य रथ -रथी और रथपतियों को सौंपा गया ।

प्रत्येक सम -विषम स्थानों, प्रत्येक अनुकूल - प्रतिकूल ऋतुओं और परिस्थितियों में घनघोर खड्ग युद्ध करने का काम पदातिक सैन्य को दिया गया ।

शिविर, मार्ग, सेतु , कूप , घाट आदि तैयार करने ; उन्हें ठीक -ठीक रखने , यन्त्र , शस्त्र , कवच आदि से साधन - सम्पन्न करने तथा आहत भटों को युद्धस्थल से ढोकर चिकित्सा - केन्द्रों तक पहुंचाने का काम विष्टि सैन्य को दिया गया ।

इस प्रकार युद्ध-संचालन की सारी व्यवस्था कर - मागध महासेनापति चण्डभद्रिक ने सोमप्रभ का अभिनन्दन करते हुए सम्पूर्ण सेनापतियों के समक्ष उनके शौर्य, कौशल , भक्ति और स्थैर्य की भूरि - भूरि प्रशंसा की और परिपूर्ण अनुशासन का बारम्बार अनुरोध किया ।

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